राजनगर का ऐतिहासिक राज कैंपस खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह राज कैंपस राज्य सरकार की अनदेखी के कारण उपेक्षित पड़ा हुआ है। यह कैंपस इंक्रीडेबल इंडिया का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहां के महल और मंदिर स्थापत्य कला के अद्भूत मिसाल पेश करते हैं। दीवारों पर की गई नक्काशी, कलाकारी और कलाकृति देखकर आप दंग रह जाएंगे।
राज कैंपस में बने सभी महल और मंदिर अपनी भव्यता और खूबसूरती की दृष्टि से बेजोड़ हैं। यहां के भव्य मंदिर और महल पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेते हैं। भव्यता और वैभव की झलक आप यहां की दीवार, मेहराब, गुंबद से लेकर मूर्ति तक में देख सकते हैं। यहां के शिल्प और कलाकृति में आपको मिथिला पेंटिंग के साथ देशी-विदेशी दोनों शैली का अनुपम संगम देखने को मिलेगा।
मिथिला की कला-संस्कृति में मछली (माछ) का एक विशेष स्थान रहा है। मछली के साथ यहां के लोग हाथी को भी शुभ मानते रहे हैं। हाथी को शुभ होने के साथ राजसी वैभव और शान का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए आप जब राजनगर के राज कैंपस में प्रवेश करेंगे, आपको जगह-जगह मछली और हाथी के प्रतीक चिन्ह देखने को मिल जाएंगे। एक महल तो हाथी की विशाल मूर्ति के पीठ पर ही बनाया गया है। इसके पास बने नौलखा पैलेस का तो अब कुछ ही हिस्सा बचा है। आज से सौ साल पहले यह महल करीब नौ लाख रुपये में बनाया था। हालांकि ये एक तरह से आपको बाहुबली फिल्म की भव्यता का झलक प्रदान करते हैं, लेकिन अब ये ढहने के कगार पर है।
बताया जाता है कि यहां के महाराज को तंत्र-मंत्र से विशेष लगाव था। इसी के कारण उन्होंने इस राज कैंपस में तंत्र विद्या के आधार पर देवी-देवताओं के 11 मंदिर बनाए थे। यहां स्थित काली मंदिर के बारे में कहा जाता है कि महाराजा रामेश्वर सिंह ने अपनी तंत्र साधना की पूर्णाहुति के बाद इसकी स्थापना की थी और काली माता का यह रूप देश में कहीं और देखने को नहीं मिलता। काली मंदिर के अलावा इस राज कैंपस में दुर्गा मंदिर, कामाख्या मंदिर, गिरिजा मंदिर और महादेव मंदिर भी हैं। यहां आपको अध्यात्म और वैदिक कला के संगम देखने को मिलेंगे। आपको इस कैंपस के चारों ओर मंदिर के दर्शन होंगे। कैंपस में बड़े-बड़े तालाब भी मिलेंगे।
खंडहर में तब्दील हो रहे राजनगर के इस राज कैंपस का निर्माण महाराज रामेश्वर सिंह ने अपने लिए किया था, लेकिन अपने बड़े भाई महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के निधन के बाद वह दरभंगा चले गए। बताया जाता है कि राजनगर के इस भव्य पैलेस को बनाने के लिए ब्रिटिश आर्किटेक्चर एमए कोरनी की सेवा ली गई थी और देश में सबसे पहले सीमेंट का इस्तेमाल यहीं राज पैलेस के भवन निर्माण में हुआ था। यह राज पैलेस करीब डेढ़ हजार एकड़ में फैला है। 1870 में बने इस राज पैलेस को 1934 में आए भूंकप से भारी नुकसान पहुंचा। महाराज रामेश्वर सिंह के दरभंगा चले जाने के कारण राजनगर पैलेस के मरम्मत और रखरखाव पर कोई खास नहीं दिया गया।
ब्लॉग पर आने और इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। अगर आप इस पोस्ट पर अपना विचार, सुझाव या Comment शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा। धन्यवाद...
राज कैंपस में बने सभी महल और मंदिर अपनी भव्यता और खूबसूरती की दृष्टि से बेजोड़ हैं। यहां के भव्य मंदिर और महल पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेते हैं। भव्यता और वैभव की झलक आप यहां की दीवार, मेहराब, गुंबद से लेकर मूर्ति तक में देख सकते हैं। यहां के शिल्प और कलाकृति में आपको मिथिला पेंटिंग के साथ देशी-विदेशी दोनों शैली का अनुपम संगम देखने को मिलेगा।
मिथिला की कला-संस्कृति में मछली (माछ) का एक विशेष स्थान रहा है। मछली के साथ यहां के लोग हाथी को भी शुभ मानते रहे हैं। हाथी को शुभ होने के साथ राजसी वैभव और शान का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए आप जब राजनगर के राज कैंपस में प्रवेश करेंगे, आपको जगह-जगह मछली और हाथी के प्रतीक चिन्ह देखने को मिल जाएंगे। एक महल तो हाथी की विशाल मूर्ति के पीठ पर ही बनाया गया है। इसके पास बने नौलखा पैलेस का तो अब कुछ ही हिस्सा बचा है। आज से सौ साल पहले यह महल करीब नौ लाख रुपये में बनाया था। हालांकि ये एक तरह से आपको बाहुबली फिल्म की भव्यता का झलक प्रदान करते हैं, लेकिन अब ये ढहने के कगार पर है।
बताया जाता है कि यहां के महाराज को तंत्र-मंत्र से विशेष लगाव था। इसी के कारण उन्होंने इस राज कैंपस में तंत्र विद्या के आधार पर देवी-देवताओं के 11 मंदिर बनाए थे। यहां स्थित काली मंदिर के बारे में कहा जाता है कि महाराजा रामेश्वर सिंह ने अपनी तंत्र साधना की पूर्णाहुति के बाद इसकी स्थापना की थी और काली माता का यह रूप देश में कहीं और देखने को नहीं मिलता। काली मंदिर के अलावा इस राज कैंपस में दुर्गा मंदिर, कामाख्या मंदिर, गिरिजा मंदिर और महादेव मंदिर भी हैं। यहां आपको अध्यात्म और वैदिक कला के संगम देखने को मिलेंगे। आपको इस कैंपस के चारों ओर मंदिर के दर्शन होंगे। कैंपस में बड़े-बड़े तालाब भी मिलेंगे।
खंडहर में तब्दील हो रहे राजनगर के इस राज कैंपस का निर्माण महाराज रामेश्वर सिंह ने अपने लिए किया था, लेकिन अपने बड़े भाई महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह के निधन के बाद वह दरभंगा चले गए। बताया जाता है कि राजनगर के इस भव्य पैलेस को बनाने के लिए ब्रिटिश आर्किटेक्चर एमए कोरनी की सेवा ली गई थी और देश में सबसे पहले सीमेंट का इस्तेमाल यहीं राज पैलेस के भवन निर्माण में हुआ था। यह राज पैलेस करीब डेढ़ हजार एकड़ में फैला है। 1870 में बने इस राज पैलेस को 1934 में आए भूंकप से भारी नुकसान पहुंचा। महाराज रामेश्वर सिंह के दरभंगा चले जाने के कारण राजनगर पैलेस के मरम्मत और रखरखाव पर कोई खास नहीं दिया गया।
सभी फोटो- हितेन्द्र गुप्ता |
आजादी के बाद से यह और अधिक उपेक्षा का शिकार होता रहा। आजकल इस कैंपस में एक कॉलेज और सीमा सशस्त्र बल- एसएसबी की 18वीं वाहिनी का मुख्यालय भी है। इंद्र पूजा और एक जनवरी को यहां लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है। आसपास के लोग यहां की भव्यता देखने और घूमने आते हैं। अगर इस बहुमूल्य धरोहर की सही देखभाल हो, इसे संरक्षित श्रेणी में रखा जाए तो इसे एक बिहार के प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। इससे इलाके के लोगों को रोजगार भी उपलब्ध हो सकेगा।
-हितेन्द्र गुप्ता
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सचमुच दर्शनीय स्थल है. एक बार लगभग 50 वर्ष पूर्व मुझे अहिल्या स्थान भ्रमण का अवसर मिला था. उस समय मैं विद्यार्थी ही था इस कारण उतने विस्तार पूर्वक इस स्थान के महत्व और सुन्दरता को ठीक से जान नहीं पाया. दुबारा फिर 1971 में दरभंगा महाराज परिसर और माँ काली के दर्शन का सौभाग्य मिला. उस समय मैं मिथिला विश्वविद्यालय से एम. ए. कर रहा था. अभी मेरी उम्र 74 वर्ष है और पूर्णतया स्वस्थ हूँ. माँ की कृपा रही तो फिर कभी उनके दर्शन करने और आसपास के दर्शनीय स्थलों को देखने अवश्य आऊंगा. सरकार को मिथिला, बिहार की संस्कृति और धरोहरों के रख - रखाव पर ध्यान देने की जरूरत है.
ReplyDeleteकाश बिहार के लोग इसकी महत्ता जान पाते और अपने एमएलए एमपी से इसके सरक्षण के लिए प्रयास करने को कहते।अब तो लोग इस कैंपस में अनाधिकृत रूप से जमीन कब्जा कर मकान भी बनाने लगे है।अपनी संस्कृति बचाना हमसब का कर्तव्य है।
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