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श्रीराम-जानकी यात्रा: अयोध्या से जनकपुर तक भारत गौरव डीलक्स AC Tourist Train, जानिए पैकेज के बारे में सबकुछ

रामभक्तों के लिए एक अच्छी खबर है। भारतीय रेल ने भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या से उनकी ससुराल नेपाल के जनकपुर तक एक स्पेशल ट्रेन चलाने का फैसला किया है। भारतीय रेल ने कहा है कि 17 फरवरी, 2023 से नई दिल्ली से भारत गौरव डीलक्स एसी टूरिस्ट ट्रेन शुरू करने जा रही है। इस ट्रेन टूर का नाम 'श्रीराम-जानकी यात्रा: अयोध्या से जनकपुर' नाम दिया गया है। यह यात्रा 7 दिन की होगी।

बिहार के प्रमुख पर्यटक स्थल सासाराम नहीं घूमे तो क्या घूमे!

सासाराम बिहार का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। यह रोहतास का जिला मुख्यालय है। यहाँ मंदिर, मकबरा, पहाड़ी, हरियाली से लेकर जलप्रपात तक वह सब कुछ है जो एक पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए चाहिए। बिहार के इस खूबसूरत सासाराम में एक से बढ़कर एक घूमने लायक पर्यटक स्थल हैं। यहाँ की हरियाली, पहाड़ी, किले और कल-कल बहती नदियों और झरनों के बीच आकर आप जिम कॉर्बेट और मसूरी- कैम्पटी झील को भूल जाएंगे। आपको विश्वास ही नहीं होगा कि हम बिहार में हैं और बिहार में इतनी खूबसूरत जगह भी है। यहाँ की खूबसूरती में आप खो जाएंगे।

बिहार के प्रमुख पर्यटल स्थल

बिहार के बारे में जानकारी ना होने के कारण लोगों को काफी गलतफहमी है। इसमें मीडिया का भी बहुत बड़ा हाथ है। अखबार और न्यूज चैनलों में ज्यादातर निगेटिव खबरों के कारण लोग बिहार के बारे में सही से नहीं जानते। विहार... विहारों की भूमि बिहार से ही बौद्ध और जैन धर्म का पार्दुभाव हुआ। खालसा पंथ के संस्थापक सिखों के के दसवें और आखिरी गुरु श्री गुरुगोविंद सिंह देव जी का जन्म भी बिहार में हुआ। दुनिया को सबसे पहले लोकतंत्र बिहार ने ही दिया और दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालय का खंडहर आज भी विद्यमान है।

दशरथ मांझी स्मारक: प्यार के लिए चीर दिया पहाड़ का सीना

दशरथ मांझी एक ऐसा शख्स, एक ऐसा नाम जिसने प्यार के लिए पहाड़ का सीना चीर दिया। माउंटेन मैन के नाम से मशहूर दशरथ मांझी बिहार में गया से करीब 31 किलोमीटर दूर गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे। गहलौर गांव के आसपास का इलाका काफी पिछड़ा है और आज से 50-60 साल पहले तो यहां की स्थिति काफी खराब थी। लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी नसीब नहीं थी। गांव में ना बिजली ना पानी, इलाज के लिए के कारण पहाड़ी से घिरे अत्री ब्लॉक के उनके गांव के लोगों को नजदीकी 15 किलोमीटर दूर के वजीरगंज शहर जाने के लिए करीब 50-60 किलोमीटर लंबा चक्कर लगाना पड़ता था। ऐसे में सिर्फ एक हथौड़ा और छेनी से अकेले 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काट कर 360 फुट लंबी और 30 फुट चौड़ी सड़क बना डाली। माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने अपने जुनून के कारण करीब 22 साल की मेहनत के बाद अत्री से वजीरगंज की दूरी को 50-60 से 15 किलोमीटर कर दिया। दशरथ मांझी ने पहाड़ काटकर रास्ता निकालने का प्रण तब लिया जब साल 1959 में उनकी पत्नी पहाड़ पार करने के क्रम में गिर गईं। समय पर दवा-पानी ना मिलने के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका। इसके बाद से दशरथ मांझी ने ठान लिया कि इस पहाड़ी के...

सुजाता गढ़ स्तूप: यहीं भक्त सुजाता से खीर खाकर भगवान बुद्ध को हुई थी ज्ञान का प्राप्ति

बिहार के गया में निरंजना नदी के किनारे बकरौर गांव में स्थित सुजाता गढ़ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थल है। यह जगह धार्मिक के साथ पुरातात्विक दृष्टि से भी काफी महत्‍वपूर्ण है। खुदाई के दौरान यहां भगवान बुद्ध की विशाल खंडित प्रतिमा और भगवान विष्णु की एक फीट ऊंची काले प्राचीन पत्थर की प्रतिमा मिली थी। यहां खुदाई में पाल वंश कालीन अभिलेख और प्रतिमा मिले हैं। यहां मिले स्तूप का व्यास 150 फीट और ऊंचाई 50 फीट है। बताया जाता है कि इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था।

पटना का रिवरफ्रंट गांधी घाट, वीकेंड पर शांति के बीच शाम में लीजिए गंगा आरती का आनंद

पटना में एक बेहद खूबसूरत जगह है- गांधी घाट। इसे आप पटना का रिवरफ्रंट भी कह सकते हैं।  गंगा नदी के किनारे पटना में कई घाट है, लेकिन सबसे लोकप्रिय घाट है गांधी घाट। इस घाट का नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया है। यहां गांधीजी की अस्थियां विसर्जित होने के कारण इसका नाम गांधी घाट रखा गया है। इसलिए इस घाट का एक ऐतिहासिक महत्व भी है।

बुद्ध अस्थि अवशेष स्थल वैशाली, दुनिया भर से बौद्ध अनुयायी आते हैं यहां

बौद्ध धर्म के अनुयायिओं के लिए बिहार का वैशाली एक पवित्र तीर्थ स्थल है। भगवान बुद्ध ने यहां कई साल गुजारे थे। वैशाली भगवान बुद्ध को काफी प्रिय था। भगवान बुद्ध के साथ ही वैशाली कई कारणों से दुनिया भर में प्रसिद्ध है। वैशाली का बासोकुंड जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर की जन्मस्थली है। वैशाली में अशोक स्तंभ, दुनिया का सबसे प्राचीन संसद भवन राजा विशाल का गढ़, बौद्ध स्तूप, अभिषेक पुष्करणी, बावन पोखर और विश्व शांति स्तूप है।

हिंद-इस्लामी वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण शेरशाह सूरी का मकबरा

शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार रोहतास जिले के सासाराम में है। शेरशाह का यह मकबरा एक विशाल सरोवर के बीचोंबीच लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है। शेरशाह ने अपने जीवनकाल में ही इस मकबरे का निर्माण शुरू कर दिया था, लेकिन पूरा उसके मृत्यु के तीन महीने बाद ही हो पाया। शेरशाह की मौत 13 मई, 1545 को कालिंजर किले में हो गई थी और मकबरे का निर्माण 16 अगस्त, 1545 को पूरा हुआ। शेरशाह के शव को कालिंजर से लाकर यहीं दफनाया गया था। इस मकबरे में 24 कब्रें हैं और शेरशाह सूरी की कब्र ठीक बीच में है।

बिहार के इस पर्यटक स्थल पर आकर आप देहरादून-मसूरी और कैम्प्टी फॉल को भूल जाएंगे...

दुनिया को लोकतंत्र के साथ बौद्ध, जैन धर्म और खालसा पंथ देने वाले बिहार में कई ऐसी खूबसूरत जगहें हैं, जहाँ आकर आप देश-विदेश के प्रमुख पर्यटक स्थलों को भूल जाएंगे। यहाँ ऐतिहासिक भव्य भवनों के साथ विशाल किले हैं, दिव्य मंदिर, गुरुद्वारे और स्तूप हैं, इठलाती कलकल बहती नदियाँ हैं, झरने और जलप्रपात हैं, तो विश्व को शांति का संदेश देते विहार भी हैं। लेकिन आज हम आपको बिहार के सिर्फ उस छोटे से हिस्से में लेकर जा रहे हैं जिसे देखकर आप देहरादून-मसूरी की पहाड़ियों और कैम्प्टी फॉल के जलप्रपात को भूल जाएंगे।

यूपी-बिहार से हनीमून पर नहीं जा सकते दूर? तो पास में ही हैं बजट के अंदर के ये रोमांटिक जगहें

आमतौर पर रोमांटिक और हनीमून डेस्टिनेशन को लेकर लोगों के जेहन में हिमाचल, उत्तराखंड, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर और केरल के नाम ही सामने आते हैं। लेकिन कोरोना के कारण या फिर बजट को लेकर हम कई बार इन जगहों पर नहीं जा पाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हमारे घर के आसपास यूपी-बिहार में ऐसा कुछ नहीं है जहां हनीमून मनाने या रोमांटिक डेट पर जा सके?

श्रावण महीने में कांवड़ों की धूम देखनी है तो यहां जाएं

इस साल 25 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है। सावन यानी श्रावण का महीना हिंदू धर्म के लोगों के लिए काफी खास है। श्रावण के महीने में करोड़ों हिंदू श्रद्धालु कांवड़ लेकर बाबा के धाम जाते हैं। इस महीने कांवड़ों की धूम रहती है। कुंभ के तरह ही उनकी कांवड़ यात्रा के लिए सरकार की ओर से काफी इंतजाम किए जाते हैं। सरकार की ओर से पूरा ख्याल रखा जाता है कि गंगाजल लेकर आने वाले कांवड़ियों को कोई परेशानी ना हो।

मन को असीम शांति प्रदान करता है नालंदा, राजगीर स्थित विश्व शांति स्तूप

बिहार में नालंदा जिले के राजगीर में है विश्व शांति स्तूप। राजगीर में वैसे तो कई पर्यटक और तीर्थ स्थल है, लेकिन यहां का प्रमुख आकर्षण है यह विश्व शांति स्तूप। यह स्तूप 400 मीटर ऊंची रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। संगमरमर के पत्थरों से बने इस विश्व शांति स्तूप में भगवान बुद्ध की चार स्वर्ण प्रतिमाएं है। ये चार स्वर्ण प्रतिमाएं जीवन के चार चरणों जन्म, ज्ञान, उपदेश और मृत्यु को दर्शाती है।

World Peace Pagoda, Vaishali: विश्व को शांति का संदेश देता वैशाली का विश्व शांति स्तूप

वैशाली का विश्व शांति स्तूप आज भी विश्व को शांति का संदेश दे रहा है। लोकतंत्र की जननी वैशाली ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है। यहां जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर की जन्मस्थली बासोकुंड यानी कुंडलपुर है। अशोक का लाट यानी अशोक स्तंभ, दुनिया का सबसे प्राचीन संसद भवन राजा विशाल का गढ़, बौद्ध स्तूप, अभिषेक पुष्करणी, बावन पोखर और सबसे प्रमुख जापान की ओर बनवाया गया विश्व शांति स्तूप है।

बिहार के वैशाली में है दुनिया की सबसे पुरानी संसद: राजा विशाल का गढ़

आज जो हम हर बात में प्रजातंत्र और लोकतंत्र की बात करते हैं उसे सबसे पहले दुनिया को बिहार ने दिया था। बिहार के वैशाली को दुनिया में पहला गणराज्य माना जाता है।  वैशाली का लिच्छवी गणराज्य विश्व का प्रथम गणतंत्र माना जाता है। यह आठ छोटे-छोटे राज्यों का संघ था और यहां सारे बड़े फैसले सामूहिक रूप से लिए जाते थे।  ईसा पूर्व 6-7 सौ साल पहले वैशाली लिच्छवी गणराज्य की राजधानी थी।

अशोक स्तंभ वैशाली: जानिए जैन धर्म का यह जन्मस्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए क्यों है खास

वैशाली यानी दुनिया का पहला गणराज्य। वैशाली यानी जिसने विश्व को लोकतंत्र दिया। महाभारत युग के राजा विशाल के नाम पर बना यह वैशाली भगवान महावीर की जन्मभूमि भी है। यानी जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर का जन्म बासोकुंड, वैशाली में ही हुआ था। लेकिन यह सिर्फ जैन धर्म के लिए ही पवित्र स्थल नहीं है, बल्कि वैशाली एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल भी है। यहां हर साल चीन, जापान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, नेपाल, कनाडा के साथ दुनिया भर से लाखों पर्यटक आते हैं।

माता मुंडेश्वरी मंदिर: दुनिया का सबसे प्राचीन मंदिर, जहां बलि के बाद भी जिंदा रहते हैं बकरे

भारत में पूजा-अर्चना के लिए एक से बढ़कर एक मंदिर हैं। लेकिन मान्यता है कि देश में माता का सबसे प्राचीन मंदिर बिहार के कैमूर जिले में है। माता का यह मंदिर है- मुंडेश्वरी मंदिर। यह मंदिर शिव और शक्ति को समर्पित है। यह मंदिर देश-दुनिया में अपनी महिमा और मान्यता के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के पूर्व में माता मुंडेश्वरी की एक दिव्य और भव्य प्रतिमा है। माता की पत्थर की मूर्ति वाराही रूप में है। माता के इस रूप का वाहन महिष है।

केसरिया में है दुनिया का सबसे बड़ा स्‍तूप, भगवान बुद्ध ने महापरिनिर्वाण से पहले किया था रात्रि विश्राम

सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लिए बिहार सबसे पवित्र स्थल है। बिहार में बौद्ध धर्म के कई पवित्र स्थलों में से एक है केसरिया का बौद्ध स्तूप। बताया जाता है कि भगवान बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व में कुशीनगर में महापरिनिर्वाण लेने से पहले एक रात केसरिया में बिताई थी। बताया जाता है कि वैशाली से कुशीनगर जाते वक्त केसरिया में विश्राम के दौरान उन्होंने अपना भिक्षा पात्र लिच्छविओं को सौंप दिया था।

नालंदा विश्वविद्यालय: दुनिया के इस सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय में बख्तियार खिलजी ने लगा दी थी आग

शिक्षा के क्षेत्र में अभी बिहार की स्थिति भले ही दयनीय हो, लेकिन एक समय बिहार के बल पर भारत विश्व गुरु कहलाता था। विक्रमशिला के साथ ही नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन काल में शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था। नालंदा विश्वविद्यालय को दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। यह विश्व का प्रथम पूरी तरह से आवासीय विश्वविद्यालय था। यहां भारत ही नहीं दुनिया भर से छात्र अध्ययन करने के लिए आते थे।

जल मंदिर पावापुरी: भगवान महावीर का निर्वाण स्थल, जहां उन्होंने दिया था पहला और अंतिम उपदेश

जल मंदिर पावापुरी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। भगवान महावीर को इसी स्थल पर मोक्ष यानी निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। जैन धर्म के लोगों के लिए यह एक पवित्र शहर है। बिहार के नालंदा जिले में राजगीर के पास पावापुरी में यह जल मंदिर है। यह वही जगह है जहां भगवान महावीर ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला और आखिरी उपदेश दिया था। भगवान महावीर ने इसी जगह से विश्व को अहिंसा के साथ जिओ और जीने दो का संदेश दिया था।

विक्रमशिला विश्वविद्यालय: दुनिया के इस प्रतिष्ठित शिक्षा के केंद्र को मुस्लिम आक्रंता बख्तियार खिलजी ने कर दिया था नष्ट

प्राचीन काल में बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय दुनिया के दो प्रतिष्ठित शिक्षा के केंद्र थे। नालंदा विश्वविद्यालय की तरह ही विक्रमशिला विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दुनिया भर से विद्यार्थी आते रहते थे। इसका निर्माण 8 वीं शताब्दी में पाल वंश के शासक धर्मपाल ने करवाया था। धर्मपाल के बाद इसके नष्ट होने से पहले तक तेरहवीं शताब्दी तक उनके उत्तराधिकारियों ने इसका संरक्षण किया। बताया जाता है कि 1202-1203 ईस्वी में मुस्लिम आक्रंता बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया।