Skip to main content

विक्रमशिला विश्वविद्यालय: दुनिया के इस प्रतिष्ठित शिक्षा के केंद्र को मुस्लिम आक्रंता बख्तियार खिलजी ने कर दिया था नष्ट

प्राचीन काल में बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय और विक्रमशिला विश्वविद्यालय दुनिया के दो प्रतिष्ठित शिक्षा के केंद्र थे। नालंदा विश्वविद्यालय की तरह ही विक्रमशिला विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दुनिया भर से विद्यार्थी आते रहते थे। इसका निर्माण 8 वीं शताब्दी में पाल वंश के शासक धर्मपाल ने करवाया था। धर्मपाल के बाद इसके नष्ट होने से पहले तक तेरहवीं शताब्दी तक उनके उत्तराधिकारियों ने इसका संरक्षण किया। बताया जाता है कि 1202-1203 ईस्वी में मुस्लिम आक्रंता बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया।


बख्तियार खिलजी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय को नष्ट करने के साथ यहां पुस्तकालय की सभी पुस्तकों में आग लगा दी। कहा जाता है कि यहां और नालंदा विश्वविद्यालय में इतनी पुस्तकें थी कि पूरे तीन महीने तक पुस्तकालय में आग धधकती रही। बख्तियार खिलजी ने यहां अध्ययन करने वाले सभी भिक्षुओं की हत्या करवा दी थी। भारत जो विश्व गुरु कहलाता था उसकी सभ्यता-संस्कृति को खत्म करने के लिए यहां के ग्रंथों को निशाना बनाया गया। ताज्जुब की बात यह है कि जिस बख्तियार ने विक्रमशिला और नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर डाले उसे आक्रमणकारी के नाम पर बिहार में नालंदा के पास एक रेलवे स्टेशन है- बख्तियारपुर जंक्शन।
खैर उसे छोड़िए विक्रमशिला विश्वविद्यालय उस समय देश का सबसे संपन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय था। यहां के विद्वानों ने दुनिया भर में भ्रमण कर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया, साथ ही भारतीय ज्ञान विज्ञान का परचम दुनिया भर में फहराया। यहां 160 विहार और लेक्चर के लिए अनेकों कक्ष बने हुए थे। बताया जाता है कि इस विश्वविद्यालय में 6 महाविद्यालय थे और हर एक में एक सेंट्रल हाल- विज्ञान भवन था। हर महाविद्यालय में 108 आचार्य होते थे। हर महाविद्यालय में एक द्वार होता था और वहां पर पंडित होते थे। उस द्वारपंडित के परिक्षण के बाद ही छात्रों को यहां परिसर में प्रवेश मिल पाता था।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय में करीब तीन हजार छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे। करीब 100 एकड़ में फैला यह पूरी तरह से आवासीय विश्वविद्यालय था। यहां बौद्ध धर्म, दर्शन, व्याकरण, तंत्र, मीमांसा, तर्कशास्त्र, विधिवाद और अन्य विषयों का अध्ययन होता था। यहां काफी संपन्न पुस्तकालय था। अब यहां विश्वविद्यालय का अवशेष- खंडहर ही बचा है। इस अवशेष को देखकर ही आप इसकी भव्यता और गौरवशाली अतीत का अनुभव कर सकते हैं।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय सिल्क सिटी के नाम से दुनिया भर में मशहूर भागलपुर से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर है। यह कहलगांव के पास अंतीचक के नजदीक है। यहां पास ही गंगा और कोसी नदी का मिलन स्थल है। यहां पवित्र गंगा नदी के उत्तर वाहिनी होने के कारण यह स्थल एक प्रमुख तांत्रिक केंद्र भी था। यह जगह भागलपुरी रेशम के साथ स्वादिष्ट आम के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां हर साल लाखों पर्यटक आते हैं।

नजदीकी दर्शनीय स्थल
विक्रमशिला विश्वविद्यालय के साथ आप भागलपुर शहर घूम सकते हैं। यहां गंगा नदी में डॉल्फिन को देखकर आपको एक अलग ही आनंद का एहसास होगा।

मंदार हिल
भागलपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर इस पहाड़ी को बारे में मान्यता है कि समुद्र मंथन के लिए इसी मंदार पर्वत का प्रयोग किया गया था। इसकी चोटी पर एक खूबसूरत झील है जहां आप असीम शांति का अनुभव करेंगे।
श्री चम्पापुर दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र

भागलपुर शहर के पास ही श्री चम्पापुर दिगंबर जैन सिद्ध क्षेत्र जैन धर्म के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए चम्पापुर ही एक मात्र ‘पंच कल्याणक’ क्षेत्र है। पंच कल्याण- 1. गर्भधारण, 2. जन्म, 3. तप, 4. ज्ञान प्राप्ति और 5. मोक्ष से सम्बंधित है।
महर्षि मेही आश्रम

महर्षि मेही आश्रम के संस्थापक सद्गुरु महर्षि मेही परमहंस जी महाराज थे। यह आश्रम गंगा तट पर स्थित है। यहां एक प्राचीन गुफा है। इसे महाभारत काल का बताया जाता है।
कैसे पहुंचे

विक्रमशिला विश्वविद्यालय भागलपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर कहलगांव के पास अंतीचक गांव के पास है। भागलपुर रेल और सड़क मार्ग से देश के दूसरे हिस्से से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आप यहां दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, पटना और अन्य शहरों से आसानी से पहुंच सकते हें। हवाई यात्रा के लिए आपको पहले पटना आना होगा, फिर पटना से करीब 200 किलोमीटर दूर भागलपुर यहां बस, ट्रेन या टैक्सी से आना होगा

कब पहुंचे-
भागलपुर में काफी गर्मी पड़ती है। यहां गर्मी और बारिश के मौसम में आने से बचना चाहिए। फरवरी से मार्च और सितंबर से नवंबर तक का मौसम यहां आने के लिए सबसे अच्छा है।

ब्लॉग पर आने और इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। अगर आप इस पोस्ट पर अपना विचार, सुझाव या Comment शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा। 

-हितेन्द्र गुप्ता

Comments

  1. The photos are very nice! Hope to see these one day. Good post!

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

अहिल्या स्थान: जहां प्रभु राम के किया था देवी अहिल्या का उद्धार

मिथिला में एक प्रमुख तीर्थ स्थल है अहिल्या स्थान। हालांकि सरकारी उदासीनता के कारण यह वर्षों से उपेक्षित रहा है। यहां देवी अहिल्या को समर्पित एक मंदिर है। रामायण में गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या का जिक्र है। देवी अहिल्या गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बन गई थीं। जिनका भगवान राम ने उद्धार किया था। देश में शायद यह एकमात्र मंदिर है जहां महिला पुजारी पूजा-अर्चना कराती हैं।

Rajnagar, Madhubani: खंडहर में तब्दील होता राजनगर का राज कैंपस

राजनगर का ऐतिहासिक राज कैंपस खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह राज कैंपस राज्य सरकार की अनदेखी के कारण उपेक्षित पड़ा हुआ है। यह कैंपस इंक्रीडेबल इंडिया का एक बेहतरीन उदाहरण है। यहां के महल और मंदिर स्थापत्य कला के अद्भूत मिसाल पेश करते हैं। दीवारों पर की गई नक्काशी, कलाकारी और कलाकृति देखकर आप दंग रह जाएंगे।

Contact Us

Work With Me FAM Trips, Blogger Meets या किसी भी तरह के collaboration के लिए guptahitendra [at] gmail.com पर संपर्क करें। Contact me at:- Email – guptagitendra [@] gmail.com Twitter – @GuptaHitendra Instagram – @GuptaHitendra Facebook Page – Hitendra Gupta

अक्षरधाम मंदिर, दिल्ली: जहां जाने पर आपको मिलेगा स्वर्गिक आनंद

दिल्ली में यमुना नदी के किनारे स्थित स्वामीनारायण मंदिर अपनी वास्तुकला और भव्यता के लिए दुनियाभर में मशहूर है। करीब 100 एकड़ में फैला यह अक्षरधाम मंदिर दुनिया के सबसे बड़े मंदिर परिसर के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल है। यहां हर साल लाखों पर्यटक आते हैं। इस मंदिर को बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (BAPS) की ओर से बनाया गया है। इसे आम भक्तों- श्रद्धालुओं के लिए 6 नवंबर, 2005 को खोला गया था।

World Peace Pagoda, Vaishali: विश्व को शांति का संदेश देता वैशाली का विश्व शांति स्तूप

वैशाली का विश्व शांति स्तूप आज भी विश्व को शांति का संदेश दे रहा है। लोकतंत्र की जननी वैशाली ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है। यहां जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर की जन्मस्थली बासोकुंड यानी कुंडलपुर है। अशोक का लाट यानी अशोक स्तंभ, दुनिया का सबसे प्राचीन संसद भवन राजा विशाल का गढ़, बौद्ध स्तूप, अभिषेक पुष्करणी, बावन पोखर और सबसे प्रमुख जापान की ओर बनवाया गया विश्व शांति स्तूप है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: जहां प्रतिदिन शयन करने आते हैं भोलेनाथ महादेव

हिंदू धर्म में ज्योतिर्लिंग का विशेष महत्व है और ओंकारेश्वर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में चौथा है। मध्यप्रदेश में 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग हैं। एक उज्जैन में महाकाल के रूप में और दूसरा ओंकारेश्वर में ओंकारेश्वर- ममलेश्वर महादेव के रूप में। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग इंदौर से 77 किलोमीटर पर है। मान्यता है कि सूर्योदय से पहले नर्मदा नदी में स्नान कर ऊं के आकार में बने इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन और परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां भगवान शिव के दर्शन से सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।

उज्जैन- पृथ्वी का नाभि स्थल है महाकाल की यह नगरी

उज्जैन यानी उज्जयिनी यानी आदि काल से देश की सांस्कृतिक राजधानी। महाकाल की यह नगरी भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली रही है। मध्य प्रदेश के बीचोंबीच स्थित धार्मिक और पौराणिक रूप से दुनिया भर में प्रसिद्ध उज्जैन को मंदिरों का शहर भी कहते हैं।

संसद भवन- आप भी जा सकते हैं यहां घूमने

देश के लोकतंत्र का मंदिर है देश का संसद भवन। यह दुनियाभर में सबसे आकर्षक संसद भवन है। इस भवन में देश की संसदीय कार्यवाही होती है। देश भर के लोकसभा के लिए चुने गए प्रतिनिधि यहीं पर चर्चा करते हैं और कानून बनाने का काम करते हैं। संसद सत्र के समय लोकसभा और राज्यसभा दोनों सनद के सदस्य कार्यवाही में हिस्सा लेते हैं।

जल मंदिर पावापुरी: भगवान महावीर का निर्वाण स्थल, जहां उन्होंने दिया था पहला और अंतिम उपदेश

जल मंदिर पावापुरी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। भगवान महावीर को इसी स्थल पर मोक्ष यानी निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। जैन धर्म के लोगों के लिए यह एक पवित्र शहर है। बिहार के नालंदा जिले में राजगीर के पास पावापुरी में यह जल मंदिर है। यह वही जगह है जहां भगवान महावीर ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला और आखिरी उपदेश दिया था। भगवान महावीर ने इसी जगह से विश्व को अहिंसा के साथ जिओ और जीने दो का संदेश दिया था।

हिंद-इस्लामी वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण शेरशाह सूरी का मकबरा

शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार रोहतास जिले के सासाराम में है। शेरशाह का यह मकबरा एक विशाल सरोवर के बीचोंबीच लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है। शेरशाह ने अपने जीवनकाल में ही इस मकबरे का निर्माण शुरू कर दिया था, लेकिन पूरा उसके मृत्यु के तीन महीने बाद ही हो पाया। शेरशाह की मौत 13 मई, 1545 को कालिंजर किले में हो गई थी और मकबरे का निर्माण 16 अगस्त, 1545 को पूरा हुआ। शेरशाह के शव को कालिंजर से लाकर यहीं दफनाया गया था। इस मकबरे में 24 कब्रें हैं और शेरशाह सूरी की कब्र ठीक बीच में है।