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अशोक स्तंभ वैशाली: जानिए जैन धर्म का यह जन्मस्थान बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए क्यों है खास

वैशाली यानी दुनिया का पहला गणराज्य। वैशाली यानी जिसने विश्व को लोकतंत्र दिया। महाभारत युग के राजा विशाल के नाम पर बना यह वैशाली भगवान महावीर की जन्मभूमि भी है। यानी जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर का जन्म बासोकुंड, वैशाली में ही हुआ था। लेकिन यह सिर्फ जैन धर्म के लिए ही पवित्र स्थल नहीं है, बल्कि वैशाली एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल भी है। यहां हर साल चीन, जापान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, नेपाल, कनाडा के साथ दुनिया भर से लाखों पर्यटक आते हैं।

लिच्छवी गणराज्य की राजधानी वैशाली के बारे में कहा जाता है कि भगवान बुद्ध यहां कई बार आए थे। उन्होंने यहां कई वर्षाऋतु बिताए थे। कुशीनगर में महापरिनिर्वाण की घोषणा उन्होंने वैशाली में ही की थी। बताया जाता है कि भगवान बुद्ध ने वैशाली के कोल्हुआ में अपना अंतिम उपदेश दिया था, उसी के याद में सम्राट अशोक ने यहां अशोक स्तंभ बनवाया था। वैशाली के अलावा अशोक स्तंभ सारनाथ, प्रयागराज, कुतुबमीनार दिल्ली, और सांची में है।
वैशाली में कोल्हुआ स्थित अशोक स्तंभ इस सभी स्तंभों से अलग है। 18.3 मीटर ऊंचे इस अशोक स्तंभ के ऊपर एक शेर की आकृति बनी है। स्थानीय लोग इसे अशोक का लाट बोलते हैं। यह अशोक स्तंभ बलुआ पत्थर का बना एक गोलाकार पिलर है। इसके ऊपर जहां शेर की आकृति बनी हुई है उसके ठीक नीचे प्रलंबित दलोंवाला उलटा कमल बना हुआ है। शेर का मुंह उत्तर दिशा कि ओर है। जो बुद्ध की अंतिम यात्रा करने की दिशा का प्रतीक है।
कोल्हुआ में अशोक स्तंभ के बगल में ईंट का बना एक विशाल आनंद स्तूप है। यह आनंद स्तूप काफी भव्य और विशाल है। बताया जाता है कि यह आनंद स्‍तूप भगवान बुद्ध के परिजन और बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद शिष्‍य बने आंनद की स्‍मृति में बनाया गया है। अब यह पूरा परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधीन है। इस स्थल के आसपास कई अन्य पुरातात्विक स्थल हैं।
अशोक स्तंभ के पास ही एक रामकुंड नामक तालाब है। इसमें स्नान घाट भी बना हुआ है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक पवित्र स्थल है। यहां कई लोग स्नान भी कर लेते हैं, नहीं तो इसके जल को अपने ऊपर छींटे मार लेते हैं। बताया जाता है कि भगवान बुद्ध के यहां आने पर बंदरों ने उन्हें शहद का कटोरा दिया था और उनके लिए एक कुंड भी खोद दिया था। यहां बंदर की एक मूर्ति भी मिली है, जिसके हाथ में शहद का कटोरा है।
कोल्हुआ के एक स्तूप में भगवान बुद्ध के अवशेषों को भी रखा गया है। पांचवी शताब्दी का बना यह स्तूप मिट्टी का बना हुआ है। यह भगवान बुद्ध के पार्थिव अवशेषों पर बने आठ स्तूपों में एक है। कहा जाता है कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अवशेषों को आठ भागों में बांटा गया, जिसमें से एक भाग वैशाली के लिच्छवियों को भी मिला था। अब बुद्ध के अस्थि अवशेषों को यहां से ले कर पटना के संग्रहालय में रखा गया है। इस स्थल को काफी बढ़िया से संजो कर रखा गया है। यहां काफी हरियाली भी है।
कोल्हुआ में बने इस परिसर में गुप्त, शुंग और कुशान साम्राज्य के चिन्ह मिलते हैं। बताया जाता है कि इसी स्थल पर पहली बार महिलाओं को संघ में शामिल किया गया था। यहीं पर बौद्ध तपस्विनियों के लिए पहला मठ बनाया गया था। कहा जाता है कि वैशाली की प्रख्यात राजनर्तकी आम्रपाली को भगवान बुद्ध ने यहीं पर बौद्ध भिक्षुणी बनाया था। महिलाओं को संघ में शामिल करना एक क्रांतिकारी कदम था।
भगवान महावीर की जन्मस्थली बासोकुंड और भगवान बुद्ध से संबंधित अशोक स्तंभ और स्तूप वैशाली के नाम से जाना जाता है, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि  यह वैशाली जिला में नहीं, बल्कि मुजफ्फरपुर जिले के सरैया ब्लॉक में आता है। सन 1972 में मुजफ्फरपुर से अलग वैशाली जिला बना दिया गया। नया जिला बनाया गया तो बासोकुंड और कोल्हुआ को वैशाली जिले में ही रखना चाहिए था।
कैसे पहुंचे

कोल्हुआ स्थित यह अशोक स्तंभ फिलहाल सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां आप पटना, हाजीपुर और मुजफ्फरपुर से आसानी से बस या टैक्सी से आ सकते हैं। ट्रेन के आने के लिए आपको 30 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन या फिर 41 किलोमीटर दूर हाजीपुर जंक्शन आना होगा। नजदीकी हवाई अड्डा पटना करीब 65 किलोमीटर दूर है।
कब पहुंचे

वैसे बिहार में सर्दी और गर्मी दोनों काफी ज्यादा पड़ती है। इसलिए यहां फरवरी से मार्च और सितंबर से नवंबर के बीच आना सही रहता है। बरसात में कोल्हुआ के आसपास बाढ़ का पानी आ जाता है। इसलिए बारिश में आने से बचना चाहिए।

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-हितेन्द्र गुप्ता

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