गंगा, यमुना और सरस्वती तीन नदियों के संगम पर स्थित है प्रयागराज। संगम स्थल को त्रिवेणी कहा जाता है। यह हिन्दुओं के लिए पवित्र और लोकप्रिय तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ यहीं किया था। इसी 'प्रथम यज्ञ' के प्र और यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना है। देश के ऐतिहासिक एवं पौराणिक नगरों में से एक प्रयागराज में हर बारह वर्ष में कुंभ मेला और हर छह साल में अर्द्धकुंभ लगता है।
बताया जाता है कि प्रयागराज सोम, वरूण और प्रजापति की जन्मस्थली के साथ ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा और ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली रह चुकी है। प्रयागराज को तीर्थराज के नाम से भी जानते हैं। सन 1575 में मुगल सम्राट अकबर ने इस शहर का नाम इलाहाबास रखा था, जो बाद में इलाहाबाद के नाम से मशहूर हुआ। अकबर ने त्रिवेणी संगम के किनारे पर एक भव्य किले का निर्माण भी करवाया।
उत्तर प्रदेश का यह शहर अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन का एक प्रमुख गढ़ रहा है। आजादी की लड़ाई में स्वराज भवन और आनंद भवन का विशेष योगदान रहा है। प्रयागराज ने देश को कई प्रधानमंत्री भी दिए हैं- जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वीपी सिंह। इसके साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे। यह शहर राजनीति और अध्यात्म के साथ विद्या और ज्ञान का भी गढ़ रहा है।
तीर्थराज होने के कारण यहां घूमने के लिए बहुत कुछ है। यहां कई प्रसिद्ध मंदिर है। इसमें हनुमान मंदिर, बड़े हनुमानजी मंदिर, पतालपुरी मंदिर, शिवकोटी महादेव मंदिर, अलोपी देवी मंदिर, कल्याणी देवी मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, नागवासुकी मंदिर, बेनीमहादेव मंदिर प्रमुख है। प्रयागराज में आप किला, आनंद भवन, विश्वविद्यालय, जवाहर प्लानिटेरियम, हाई कोर्ट बिल्डिंग, अल्फ्रेड पार्क, थॉर्नहिल मेन मेमोरियल, मिंटो पार्क और खुसरो बाग देख सकते हैं।
त्रिवेणी संगम
यहां पवित्र गंगा, यमुना और गुप्त सरस्वती नदी का मिलन होता है। यहां गंगा का मटमैला पानी यमुना के हरे पानी में मिलता है। जिसे देखकर आप दोनों नदी के पानी में फर्क महसूस कर सकते हैं। श्रद्धालु यहां नाव से जाकर बीच संगम में नावों को आपस में जोड़कर बनाए गए मंच पर डुबकी लगाते हैं और पूजा-अर्चना भी करते हैं। यह बहुत ही अद्भुत दृश्य होता है।
गंगा तट से संगम तक नाव से आते जाते हजारों पक्षियों के बीच हवाओं के साथ आपका प्रकृति से जुड़ाव एक दिलकश नजारा पेश करता है। यह जगह सिविल लाइन्स से करीब सात किलोमीटर दूरी पर है। माना जाता है कि इस त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने से सभी पाप नष्ट तो हो ही जाते हैं, मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। सुबह और शाम के समय यहां का माहौल एकदम दिव्य होता है।
कुंभ के समय तो यहां प्रतिदिन लाखों लोग डुबकी लगाते हैं, लेकिन आम दिनों में भी यहां हजारों लोग आते हैं। संगम तट पर हर बारह साल पर कुंभ और हर छह साल पर अर्धकुंभ का आयोजन होता है। कुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालु, साधु और संत यहां पवित्र स्नान करने आते हैं। करीब महीने भर चलने वाले इस कुंभ के समय प्रयागराज में संगम किनारे एक नगरी ही बसा दी जाती है। सरकार की ओर से उनके लिए सभी तरह के इंतजाम किए जाते हैं।
बड़े या लेटे हनुमान जी का मंदिर
संगम के पास ही बड़े हनुमानजी का प्रसिद्ध मंदिर है। किले के निकट बने इस हनुमानजी के मंदिर को लेटे हनुमानजी का मंदिर भी कहते हैं। यहां हनुमानजी की 20 फीट लंबी मूर्ति लेटी हुई अवस्था में है। बताया जाता है कि श्रावण में गंगा माता हर साल मंदिर तक आती हैं।
प्रयागराज का किला
संगम किनारे इस किले का निर्माण बादशाह अकबर ने 1583 में कराया था। इस किले की वास्तुकला अपने आप में बेजोड़ है। किले के भीतर 10.6 मीटर ऊंचा अशोक स्तंभ और सरस्वती कूप भी है। यहां एक पवित्र अक्षय वट है जिसे अब पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। यह पेड़ श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र है। बताया जाता है कि यहां प्रभु श्रीराम माता सीता और लक्ष्मण के साथ आए थें। यह अक्षय वट पातालपुर मंदिर के पास है।
आनंद भवन
इसे स्वराज भवन के नाम से भी जानते हैं। इस भवन की निर्माण पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ने करवाया था। अब यह घर एक म्यूजियम में बदल दिया गया है। यहां मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की दुर्लभ तस्वीरों, किताबों और सामानों को प्रदर्शित किया गया है।
चंद्रशेखर आजाद पार्क
इसे अल्फ्रेड पार्क भी कहा जाता है। 133-एकड़ में फैले इसी पार्क में सन 1931 में अंग्रेजों से लड़ते हुए महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मार ली थी। उन्होंने कसम खाई थी कि जिंदा अंग्रेजों के हाथ नहीं लगूंगा।यहां उनकी एक भव्य आदमकद प्रतिमा लगी हुई है।
मिंटो पार्क
यह सरस्वती घाट के पास है। इसमें एक पत्थर के शिखर पर चार शेरों का निशान है। इस पार्क की नींव लॉर्ड मिंटो ने 1910 में रखी थी।
खुसरो बाग
खुसरोबाग भी प्रयागराज का एक ऐतिहासिक पार्क है। यहां जहांगीर के बड़े बेटे खुसरो, उसकी मां और बहन का मकबरा है। तीनों मकबरें मुगल वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरण हैं। यहां की नक्काशी बहुत सुंदर है।
ऑल सैंट केथेड्रल
ऑल सैंट केथेड्रल प्रयागराज का फेसम गिरजाघर है। बताया जाता है कि यह एशिया का अपने किस्म का अनूठा एंग्लिकन केथेड्रल है।
म्यूजियम
चंद्रशेखर आजाद पार्क के पास स्थित इलाहाबाद संग्रहालय में कई ऐतिहासिक चीजें हैं। इस संग्रहालय में कई पेंटिग्स, प्राचीन मुद्रा और मूर्तियां रखी हुई हैं।
भारद्वाज आश्रम
बताया जाता है कि ऋषि भारद्वाज ने यहां भार्द्वाजेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित किया था। इस आश्रम में कई और मूर्तियां हैं। लोगों का कहना है कि भगवान राम वन जाने से पहले यहां आए थे।
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कैसे पहुंचे-
प्रयागराज देश का एक प्रमुख शहर और तीर्थ स्थल है। संगम होने के कारण यहां रोज हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। इसलिए यहां देश के किसी भी इलाके से आसानी से पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग के साथ यहां रेल से भी आराम से पहुंच सकते हैं। यहां का हवाई अड्डा शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। आप यहां हवाई मार्ग से वाराणसी (150 किमी) और लखनऊ (200 किमी) आकर रेल या सड़क मार्ग से यहां पहुंच सकते हैं।
कब पहुंचे-
दिल्ली की तरह प्रयागराज में भी काफी गर्मी और सर्दी पड़ती है। यहां घूमने के लिए सितंबर से मार्च तक का समय सबसे अच्छा रहता है। वैसे गर्मी में सुबह और शाम में संगम तट पर घूम सकते हैं। बारिश के समय यहां ना आना अच्छा रहेगा।
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-हितेन्द्र गुप्ता
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