यमुना नदी का उद्गम स्थल मंदिर से करीब एक किलोमीटर आगे हिमनद या चंपासर ग्लेशिर में है। यहां जाने का रास्ता काफी दुर्गम है। यहां तक पहुंचना काफी मुश्किल है। इसलिए यमुना देवी मंदिर का निर्माण पहाड़ी के तल पर किया गया। चारों ओर से पहाड़ों से घिरा यह जगह काफी सुंदर और मनमोहक है। यहां आपके मन को एक अलग ही शांति मिलती है। यमुनोत्री हिमनद से निकलकर करीब 10 किलोमीटर दूर सप्तऋषि कुंड में गिरती है फिर यहां से यमुना नदी के रूप में प्रवाहित होती हैं।
मंदिर के दोनों तरफ दो कुंड हैं- सूर्य कुंड और गौरी कुंड। सूर्य कुंड गर्म पानी का स्रोत है। श्रद्धालु यहां पोटली में चावल और आलू रखकर कुंड के गर्म पानी में डालते हैं। गर्म पानी में पके इन चावल और आलू को मंदिर में चढ़ाते हैं। इस प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। तीर्थयात्री या पर्यटक यहां से करीब 6-7 किलोमीटर पहले जानकीचट्टी तक अपनी गाड़ी या टैक्सी से आते हैं। फिर यहां से पैदल यमुनोत्री धाम तक पैदल, पालकी या टट्टुओं से पहुंचते हैं। पहाड़ों से घिरे जानकीचट्टी से ही एक तरह से यमुनोत्री की यात्रा शुरू होती है।
जानकीचट्टी से पहले लोग यमुनोत्री के लिए हनुमान चट्टी से पैदल यात्रा शुरू करते थे। तब श्रद्धालुओं को करीब 13-14 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। अब सड़क बनने से सुविधा हो गई है। यहां पर्यटक भगवान हनुमान का दर्शन करते हैं। यहां पर श्रद्धालुओं के रहने और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था रहती है।
यमुनोत्री से करीब 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है-बरकोट। यहां आप गंगा और यमुना दोनों पवित्र नदियों का जल प्राप्त कर सकते हैं। यहां का दृश्य बहुत ही दिव्य है। मन यहां से आने का नहीं करता है। आप यहां कुछ समय जरूर बिताना चाहेंगे। पर्यटक यहां ट्रेकिंग करने भी आते हैं।
कैसे पहुंचे-
सड़क मार्ग से यमुनोत्री जाने के लिए आपको ऋषिकेश (200 किमी), हरिद्वार (250 किमी), देहरादून (200 किमी) और उत्तरकाशी (130 किमी) से टैक्सी या बस लेनी होगी। रेल से आने पर आपको देहरादून या ऋषिकेश आकर फिर यहां से सड़क मार्ग से यमुनोत्री जाना होगा। यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है।
कब पहुंचे-
यहां आने के लिए सबसे बढ़िया मौसम अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर के बीच का है।
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-हितेन्द्र गुप्ता
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