उत्तर प्रदेश में कुशीनगर बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह भगवान बुद्ध के चार पवित्र स्थानों में से एक है। बताया जाता है कि भगवान बुद्ध ने 483 ईसा पूर्व में कुशीनगर में ही आखिरी सांस ली थी यानी महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था। यहां रामाभार स्तूप में उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
यहां के महापरिनिर्वाण मंदिर को बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की 6.1 मीटर लंबी लेटी हुई निर्वाण प्रतिमा है। इस प्रतिमा को लाल बलुआ पत्थर के एक ही पत्थर से बनाया गया है। इस प्रतिमा में भगवान बुद्ध पश्चिम दिशा की ओर देख रहे हैं। यह मुद्रा महापरिनिर्वाण के लिए सही आसन माना जाता है। बताया जाता है कि यह प्रतिमा पांचवी शताब्दी का बना है।महापरिनिर्वाण मंदिर में लेटे हुए भगवान बुद्ध की यह विशालकाय मूर्ति सन 1876 में हुई खुदाई में मिली थी। खुदाई से यह भी पता चला कि 11वीं शताब्दी में यहां काफी बौद्ध भिक्षु रहते थे। बताया जाता है कि पांचवीं शताब्दी के अन्त में भगवान बुद्ध का यहां आगमन हुआ था। वर्तमान महापरिनिर्वाण मंदिर पांचवीं शताब्दी में बने मठों के खंडहरों में स्थित है। भगवान बुद्ध के अवशेष यहां रखे गए हैं।
भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के कारण कुशीनगर बौद्ध धर्म का एक पवित्र स्थल है। यह एक अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल भी बन गया है। यहां हर साल दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। यहां बौद्ध धर्म मानने वाले कई देशों के बौद्ध मन्दिर हैं। कुशीनगर में जापानी मंदिर, बर्मा मंदिर, चीनी मंदिर, थाई मंदिर, कोरियाई मंदिर, श्रीलंकाई मंदिर, तिब्बती मंदिर भी है।
यह स्थल गोरखपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रामायण के अनुसार यह स्थान त्रेता युग में भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी। उन्हीं के नाम पर इस स्थल का नाम कुशावती पड़ा, जो बाद में कुशीनगर बन गया। बताया जाता है कि तीसरी शताब्दी में इस स्थान का संबंध महान सम्राट अशोक से भी रहा है। चीनी यात्री हेन त्सांग ने भी इस स्थल की जिक्र किया है।
कुशीनगर में महापरिनिर्वाण मंदिर और विभिन्न देशों के बौद्ध मंदिर के साथ ही कई दर्शनीय स्थल हैं-
रामभार स्तूप
रामभार स्तूप यहां के प्रमुख महापरिनिर्वाण मंदिर से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है। भगवान बुद्ध के अंतिम संस्कार स्थल पर यह 15 मीटर ऊंचा स्तूप बना है। बौद्ध लेखों में इस स्तूप को मुकुट बंधन चैत्य का नाम दिया गया है। यह स्तूप एक झील में स्थित है।
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बताया जाता है कि महात्मा बुद्ध की भूमि स्पर्श प्रतिमा यहां मिली थी। करीब हजार साल प्राचीन यह प्रतिमा बोधिवृक्ष के नीचे मिली है।
बौद्ध म्यूजियम
खुदाई में मिली मू्र्तियों और वस्तुओं को यहां के बौद्ध म्यूजियम रखा गया है। यहां कई मूर्तियों, प्राचीन सिक्कों और कलाकृतियों को भी रखा गया है। यहां आने वाले पर्यटकों को इस म्यूजियम में जरूर आना चाहिए।
सूर्य मंदिर
सूर्य भगवान को समर्पित यह मंदिर काफी प्राचीन है। मंदिर में सूर्य भगवान की काले पत्थर की दिव्य मूर्ति है। बताया जाता है कि यह चौथी शताब्दी में खुदाई में मिली थी। इसके साथ ही यहां शिव मंदिर, राम-जानकी मंदिर, मेडिटेशन पार्क भी आप जा सकते हैं
कैसे पहुंचें:
कुशीनगर रेल, सड़क और हवाई मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहां हर साल दुनिया भर से लाखों पर्यटक आते हैं, इसलिए यहां एक अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया जा रहा है, जो अगले साल फरवरी, 2021 में चालू हो जाएगा। फिलहाल नजदीकी हवाई अड्डा गोरखपर का 50 किलोमीटर दूर है। आप रेल से भी गोरखपुर आकर यहां आ सकते हैं।
कब पहुंचे-
यहां काफी ज्यादा गर्मी और सर्दी पड़ती है। इसलिए यहां फरवरी से मार्च और सितंबर से नवंबर के बीच आने का सबसे अच्छा समय रहता है।
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-हितेन्द्र गुप्ता
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