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ग्रामीण पर्यटन की नई क्रांति: स्वदेश दर्शन 2.0 योजना से गांवों का कायाकल्प

भारत में ग्रामीण पर्यटन एक नई दिशा ले रहा है, जिसमें मोदी सरकार की स्वदेश दर्शन 2.0 योजना निर्णायक भूमिका निभा रही है। इस योजना के तहत देश के सुदूर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध गांव न केवल पर्यटन के केंद्र बन रहे हैं, बल्कि ग्रामीण विकास, स्थानीय अर्थव्यवस्था एवं आजीविका के नए रास्ते भी खुल रहे हैं।


योजना की पृष्ठभूमि और उद्देश्य
2014-15 में शुरू हुई स्वदेश दर्शन योजना का उद्देश्य थीम आधारित पर्यटन सर्किटों का एकीकृत विकास था—जैसे कि बौद्ध, तटीय, ग्रामीण, आध्यात्मिक एवं हेरिटेज सर्किट। इसके अगले चरण, स्वदेश दर्शन 2.0 (2023) में, ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र के साथ स्थायी और जिम्मेदार पर्यटन का फोकस आया। अब ध्यान सर्किट आधारित विकास की बजाय गंतव्यों और विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों के कायाकल्प पर है।

57 चयनित गंतव्य, गांव केंद्र में
सरकार ने स्वदेश दर्शन 2.0 के तहत देशभर में 57 नए गंतव्यों का चयन किया है, जिनमें ग्रामीण क्षेत्र विशेष तौर पर शामिल किए जा रहे हैं। उत्तराखंड के सीमांत जिले—चंपावत और पिथौरागढ़—इस योजना में जुड़ गए हैं, जिससे पहाड़ी और सीमावर्ती गांव अब पर्यटन मानचित्र पर आ चुके हैं। साथ ही, बिहार और केरल जैसे राज्यों में भी क्लस्टर-आधारित ग्रामीण पर्यटन परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जैसे केरल का मालानाड-मालाबार क्रूज रूट और बिहार का भितिहरवा-चंद्रहिया-तुरकौलिया सर्किट।

इन प्रोजेक्ट्स का उद्देश्य—

-पर्यटन स्थलों पर बुनियादी ढांचे (सड़कें, पेयजल, बिजली, इंटरनेट, सामुदायिक भवन आदि) का विकास
-स्थानीय संस्कृति एवं परंपराओं को जीवित रखते हुए आर्थिक विकास
-युवाओं एवं महिलाओं को स्थानीय व्यवसायों जैसे होमस्टे, स्थानीय गाइडिंग, हस्तकला, खानपान आदि में जोड़ना

ग्रामीण पर्यटन ग्राम पोर्टल और प्रतियोगिताएं
‘ग्रामीण पर्यटन ग्राम पोर्टल’ देश के अनछुए और संभावनाशील गांवों को दुनियाभर में प्रचारित करने का डिजिटल माध्यम बन गया है। यहां भारत के विभिन्न ग्रामीण होमस्टे, पर्यटन गांवों, उनकी अनूठी संस्कृतियों एवं सेवाओं की जानकारी दी जा रही है—जिससे देशी-विदेशी पर्यटक इन स्थानों तक आसानी से पहुंच सकते हैं।

इसके अलावा, ‘सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव प्रतियोगिता’ के आयोजन से गांवों में प्रतिस्पर्धा का भाव पैदा हुआ है; बेहतर बुनियादी ढांचे, स्वागत, स्वच्छता और स्थानीय-कलाओं के विकास के लिए ग्राम पंचायतें, स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय लोग एकजुट होकर काम कर रहे हैं।

विशेष पहचान बना रहे हैं भारत के गांव
पर्यटन मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश के रकछम-छितकुल, सिक्किम के ग्नथांग, अरुणाचल के किबिथो और उत्तराखंड के माणा-जादूंग जैसे अनोखे गांवों को “जीवंत ग्राम” श्रेणी में रखा है। ये गांव अपने नैसर्गिक, सांस्कृतिक और सामुदायिक जीवन के कारण ग्रामीण पर्यटन के नए मॉडल के रूप में स्थापित हो रहे हैं।

सतत, जिम्मेदार और समावेशी विकास की मिसाल
स्वदेश दर्शन 2.0 के तहत नीति निर्माण में यह सुनिश्चित किया गया है कि विकास का लाभ सीधा स्थानीय समुदायों को मिले, उनकी संस्कृति, पर्यावरण और जीवनशैली अक्षुण्ण रहे। टिकाऊ पर्यटन, प्रामाणिक अनुभव, और ग्रामीणों के लिए आय के स्थाई साधन इस पहल की आधारशिला हैं। इसके पीछे ‘आत्मनिर्भर भारत’ की सोच भी है, जिसमें भारत के गांव स्वावलंबी एवं रोजगार-सृजन के नए केंद्र बनें।

फोटो- अतुल्य भारत
स्वदेश दर्शन 2.0 के ग्रामीण फोकस के चलते अब भारत के दूर-दराज़ के गांव न केवल पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं, बल्कि स्थानीय विकास, रोजगार, सांस्कृतिक विनिमय और सतत आजीविका के नए केंद्र के रूप में उभर रहे हैं। इस योजना के तहत ग्रामीण भारत की असली आत्मा—उसकी परंपराएं, पाक-शैली, हस्तशिल्प, लोककला और जीवनशैली—अब भारत के पर्यटन मानचित्र पर जगह पा रही है, जिससे गांवों की तस्वीर बदली है और स्थानीय लोगों के चेहरे पर मुस्कान आई है।

ब्लॉग पर आने और इस पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद। अगर आप इस पोस्ट पर अपना विचार, सुझाव या Comment शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा। -हितेन्द्र गुप्ता

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